ENGINEERING MECHANICS 1 ,गति के नियम

गति के नियम :
 प्रथम नियम : यदि कोई वस्तु स्थिर है  या एक समान गति से गतिमान है तो तब तक उसी अवस्था में रहेगी जब तक कि उस पर कोई बाह्य बल आरोपित  न किया जाये।

द्धितीय नियम : आरोपित बाह्य बल (F ) वस्तु के द्रव्यमान (m ) एवं उत्पन्न त्वरण (a ) के गुणक के बराबर होता है
गणितीय रूप में F = m x a.
यदि हम नियत द्रव्यमान पर आरोपित बाह्य बल को बढ़ाते है तो उत्पन्न त्वरण भी बढ़ेगा,  एवं यदि द्रव्यमान को दोगुना कर दिया जाये तो समान बल पर आधा त्वरण उत्पन्न होगा।

(बल एवं त्वरण दोनों सदिश राशि है एवं त्वरण की दिशा हमेशा ही आरोपित बल की दिशा में होती है )

तृतीय नियम : प्रत्येक क्रिया की समान एवं विपरीत प्रतिक्रिया होती है।

बल : बल वह बाहरी कारक है जो किसी वस्तु या पदार्थ को हटाने, तोड़ने या गतिमान करने का प्रयत्न करता है।
यहाँ हमने बल को एक बाहरी कारक माना है क्युकि यह हमेशा ही  बाहरी रूप से कार्य करता है, इसके विपरीत वस्तु जो आतंरिक रूप से विरोध करती है उसे प्रतिक्रिया माना जाता है।

(जिंदगी की यांत्रिकी  ;  इन नियमो को जिंदगी में कैसे लागु करे हम इस उदाहरण से समझने का प्रयास करे।
हम सभी अपनी अपनी जिंदगी में अलग अलग दिनचर्या जीते है, उदाहरण के लिए यदि हमे रात में देरी से सोने एवं सुबह देरी से उठने की आदत है, हम रोजाना व्यायाम नहीं करते, भोजन का निर्धारित समय नहीं है, और कई ऐसी ही दुसरी आदते।  हम इन्ही आदतो के साथ जीते है ये कहकर कि हम इसमें अच्छा महसूस करते है , लेकिन जब हम बीमार पड़ जाते है और डॉक्टर के पास जाते है तो वो सलाह देता है कि एक नियमित दिनचर्या  अपनाइये।  हम घर आते है दवाई लेते है और बचपन में पढ़ी अंग्रेजी की वो कविता याद करते है; Early to bed and early to rise, make a men healthy wealthy and wise”. और हम व्यवस्थित दिनचर्या अपनाने का प्रयास करते है, जल्दी ही हम ठीक हो जाते है।
यहाँ डॉक्टर बाहरी बल है एवं हमारी आदते जड़त्व है। कुछ समय बाद बाहरी बल के अभाव में हम फिर से वही पुरानी आदते अपनाना शुरू कर देते है , बस यही समय है एक बाहरी बल लगाने का जिसका नाम है   आत्म अनुशासन। यदि आप इस बल के द्वारा धकेले जाते है तो आप अपने लक्ष्य की दिशा में त्वरित होने लगते है।

अब तृतीय नियम की बात करे तो ये हमारे व्यवहार पर लागु होता है, प्रत्येक क्रिया की समान एवं विपरीत प्रतिक्रिया होती है। यदि हम किसी व्यक्ति को उसकी आदतो या कार्यशैली में बदलाव के लिए प्रेरित करना चाहते है तो हमेशा सकारात्मक रूप से प्रेरित कीजिये, जैसे उन्हें प्रोत्साहन देकर या उन्हें बदलाव के फायदे बताकर आदि।  यदि आप उन्हें सकारात्मक तरीके से समझाएंगे तो वे भी सकारात्मक ही प्रतिक्रिया देंगे,  यदि आप नकारात्मक तरीके अपनाएंगे, जैसे उनकी गलतियाँ निकलना तो वे भी आपके एवं बदलाव के प्रति नकारात्मकता ही दिखाएंगे।
याद रखे  "उत्पादकता एवं नकारात्मकता एक दूसरे के व्युत्क्रमानुपाती होती है।" )   

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http://blog.mechanicsoflife.in/2016/04/work-w-fxd-f-f-d-engineering-mechanics.html

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